Eid- Ul-Adha 2024:‘बकरी ईद’ क्यू मनाई जाती है? ओर भारत ईद कब हैं देखे

मुसलमानों के दो बड़े त्योहार है एक ईद जिसे ईद-उल-फितर के नाम से जानते हैं दूसरा Eid- Ul-AZha जिसे बकरा ईद के नाम से भी जानते हैं. ईद-उल-फितर के दो महीने बाद बकरा ईद का त्योहार मनाया जाता है. ये त्योहार त्याग और बलिदान का पर्व है जिसमें अल्लाह की राह में मुसलमान कुर्बानी करते हैं. तो आईये जानते हैं बकरी ईद के बारे मे सब जानकरी,

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कुर्बानी का महत्व जाने

Eid- Ul-AZha 2024
Eid- Ul-AZha 2024

आगे उन्होंने बताया कि इब्राहीम से जो असल कुर्बानी मांगी गई थी. वह थी उनकी खुद की थी. अर्थात ये कि खुद को भूल जाओ, मतलब अपने सुख-आराम को भूलकर खुद को मानवता की सेवा में पूरी तरह लगा दो. तब उन्होंने अपने पुत्र इस्माइल और उनकी मां हाजरा को मक्का में बसाने का निर्णय लिया. मक्का उस समय रेगिस्तान के सिवा कुछ नहीं था. उन्हें मक्का में बसाकर वह खुद मानव सेवा के लिए निकल गए.

इस तरह एक रेगिस्तान में बसना उनकी और उनके पूरे परिवार की कुर्बानी थी. ईद उल अजहा के दो संदेश हैं. पहला परिवार के बड़े सदस्य को स्वार्थ के परे देखना चाहिए. खुद को मानव उत्थान के लिए लगाना चाहिए. ईद उल अजहा याद दिलाता है कि कैसे एक छोटे से परिवार के जरिए एक नया अध्याय लिखा गया.

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क्यों मनाई जाती है बकरी ईद

Eid- Ul-AZha 2024
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बकरीईद का पर्व पैगंबर इब्राहिम की कुर्बानी को याद करके मनाया जाता है. इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार एक बार पैंगबर के सपने में अल्लाह सपने में आते हैं और उनसे उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांग ली. इन सबके बाद पैंगबर इब्राहिम सोच में पड़ गए और सोचने लगे की अल्लाह को वो किसी चीज की कुर्बानी दें. उसके बाद उन्होंने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने के बारे में सोचा.

जब वो अपने बेटे को रास्ते में कुर्बानी देने के लिए सोच रहे थे. उनको एक व्यक्ति मिलता है और उनसे कहता है कि आप अपने बेटे की जगह किसी जानवर की कुर्बानी दे दो पर इब्राहिम को लगा की ये अल्लाह के साथ धोखा होगा. उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की कुर्बानी देने लगे, लेकिन जब वो आंखों से पट्टी हटाते हैं. तब देखते हैं कि उनके बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी दे दी गई है. अल्लाह ने उनके बेटे को सलामत रखा और उसके बाद से इस्लाम धर्म में बकरे की कुर्बानी दी जाने लगी.

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भारत में कब मनेगी बकरी ईद

Eid- Ul-AZha 2024
Eid- Ul-AZha 2024

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अन्य दक्षिण एशियाई देशों और दक्षिण अफ्रीका में ईद-उल-अजहा खाड़ी देशों से एक दिन बाद यानी 17 जून, 2024 को मनाई जाएगी, क्योंकि इन क्षेत्रों में 07 जून को धू-अल-हिजाह का चांद देखा गया था. आमतौर पर जम्मू-कश्मीर और केरल जैसे दो राज्यों में ईद-उल-फित्र का त्योहार भारत के बाकी हिस्सों से एक दिन पहले मनाया जाता है, लेकिन ईद-उल-अजहा के मामले में ऐसा नहीं है. इसलिए सोमवार को देशभर में ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाया जाएगा.

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ईद-उल-अजहा की तैयारियां

Eid- Ul-AZha 2024
Eid- Ul-AZha 2024

ईद-उल-अजहा की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं.लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े खरीदते हैं, और स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं. ईद के दिन लोग नमाज अदा करते हैं, एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाइयां बांटते हैं.

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तीन हिस्सों में बटता है बकरे का मांस

मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन अपनी हैसियत के अनुसार कुर्बानी देते हैं और जरूरतमंदों और गरीबों को मांस बांटते हैं. कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है. एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, दूसरा भाग रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा भाग खुद रखा जाता है. ये त्योहार गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने और समाज में भाईचारे और सद्भावना को बढ़ावा देने की प्रेरणा देता है.

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ईद मे इन बातों का रखें खास ध्यान

ईद उल अजहा, ईद उल फित्र के बाद मुस्लिमों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है. यह पर्व ईद-उल-फितर के लगभग दो महीने बाद बनाया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से बकरीद जिल हिज्जह (zil hijjah) महीने की 10वीं तारिख को मनाया जाता है.

बकरीद के दिन नमाज पढ़ने के बाद ही कुर्बानी दी जाती है. ऐसी मान्यता के है कि कुर्बान किए गए बकरे को तीन हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमें से एक हिस्सा घर में इस्तेमाल किया जाता है, दूसरा गरीबों को दान में दिया जाता है और तीसरा हिस्सा रिश्तेदारों के लिए निकाला जाता है.

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ये त्योहार तीन दिनों का होता है. इन तीन दिनों में से किसी भी दिन मुस्लिम कुर्बानी दे सकते हैं. बकरीद के मौके पर ही दुनियाभर के मुस्लिम हज करने सऊदी अरब की यात्रा पर भी जाते हैं.

इस त्योहार को पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिससलाम की याद में मनाया जाता है. इस्लाम धर्मिक मान्यता के अनुसार अल्लाह ने इब्राहिम के सपने में आकर उनकी सबसे प्यारी चीज मांगी थी. हजरत इब्राहिम के लिए उनका बेटा ही सबसे प्रिय था, इसलिए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया.

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