डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के जन्मदिन को डॉ. अम्बेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है. इसके साथ ही वह आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री भी थे. प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती मनाई जाती है.
Ambedkar Jayanti 2024:डॉ. भीमराव अंबेडकर, एक ऐसा नाम है, जिसके बारे में देश ही नहीं बल्कि दुनिया का हर एक शख्स जानता है.भारतीय संविधान का निर्माता बाबासाहेब का देश में एक अहम स्थान रहा है, जिसे कभी भूलाया नहीं जा सकता. 14 अप्रैल 1891 में महू में जन्मे बाबासाहेब का शुरुआती जीवन बड़ा संघर्षों से बिता. लेकिन किसे पता एक दलित परिवार का बच्चा एक दिन जाकर भारत का संविधान लिख देगा.
क्यों मनाई जाती है अम्बेडकर जयंती?
देश के वंचितों के प्रति डॉक्टर अम्बेडकर की महान सेवाओं को याद करने के लिए पूरे देश में डॉ बी.आर. अम्बेडकर जयंती मनाई जाती है. भारतीय संविधान काफी हद तक उन्हीं के दिमाग की उपज थी. उन्होंने शिक्षा के मूल्यों को बढ़ावा देने और वंचित समुदाय की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए 1923 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की. डॉ अम्बेडकर एक सामाजिक आंदोलन के प्रभारी थे, जिसने देश में जातिवाद को समाप्त करने के लिए काम किया. उन्होंने विभिन्न सामाजिक अभियान शुरू किये, जिनमें पुजारियों, मंदिरों में प्रवेश, जातियों आदि के खिलाफ अभियान भी शामिल थे.
बाबा साहेब का राष्ट्र को योगदान
भारतीय समाज के लिए बाबासाहेब के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं के कानूनी अधिकारों की पहल थी. बाबा साहब सिर्फ वर्ग विशेष के नेता न होकर पूरे हिन्दू समाज के प्रति हितकारी कदम उठाने की वकालत करते हैं.
आज के कुछ नवबौद्धवादी उनकी हिन्दू हितैषी सोच को दरकिनार करते हैं जबकि उन्होंने पूरे जीवन काल में ना सिर्फ वंचितों बल्कि समाज के हर तबके विशेषकर महिलाओं के कल्याण की बात कही.
संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में बाबासाहेब ने संविधान सभा में समान नागरिक संहिता के माध्यम से न केवल हिंदू महिलाओं बल्कि सभी वर्ग, पंथ और धर्म की महिलाओं के लिए समान अधिकार प्रदान करने की कल्पना की थी. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान ऑर द पार्टिशन ऑफ इंडिया’- में लिखा है कि मुसलमानों में हिंदुओं की सामाजिक बुराइयों के साथ और कुछ भी हैं. वह “कुछ और” मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा की अनिवार्य प्रणाली है. उन्होंने लिखा कि मुस्लिम महिलाएं दुनिया की सबसे असहाय इंसान होती हैं.
संविधान सभा में समान नागरिक संहिता के समर्थन के लिए उनकी अपील के प्रति संविधान सभा के अधिकतर सदस्यों की तटस्थता रही. प्रगतिशील समाज वो हैं जो सामाजिक और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए अपने सामाजिक मानदंडों, प्रथाओं और रीति-रिवाजों का अन्तरावलोकन और आत्मनिरीक्षण कर सकते हैं उनमें बदलाव की पहल कर सकते हैं.
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बाबा साहेब का वैचारिक संसार और जीवन
बाबासाहेब आधुनिक भारत की अंतरात्मा के रक्षक थे. उनकी प्रज्ञा और बौद्धिक सामर्थ का अवलोकन विविध विषयों पर लेखनी और निपुणता – अर्थशात्र , न्याय, राजनीति, समाज सुधार और श्रम कानून पर लिखी पुस्तकों से मापा जा सकता है. हालांकि उन्हें आमतौर पर समाज के हाशिए पर खड़े दलित समुदाय के नेता के रूप में माना जाता है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि समाज की बुराइयों से लड़ने में उनका योगदान किसी से कम नहीं है पर महिला केंद्रित विषय और लैंगिक विमर्श को प्रभावी रूप से खड़ा करने में उनके अपार योगदान को पहचान दी जानी चाहिए.
1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन के दूसरे सत्र में भाग लेने के लिए जाने से पहले बाबासाहेब ने दर्शकों का हिस्सा रही महिलाओं को समाज में सभी परीक्षणों और विवादों को दूर करने और मनोरंजन के उद्देश्य से महिलाओं को भोग की वास्तु मानने के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हुए एक उत्साही भाषण दिया. कई बार उन्होंने ऐसी सभाओं को संबोधित किया जहां बॉम्बे के ‘रेड लाइट एरिया’ कमाठीपुरा से संबंधित महिलाएं भाग लेती थीं, जहां उन्होंने उनसे अपमानजक जीवन छोड़ने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा-
“मेरा मानना है कि राष्ट्र के हित में, मां को प्रसव के पूर्व अवधि के दौरान और बाद में भी आराम मिलना चाहिए.” फलस्वरूप, मद्रास प्रांत और अन्य प्रांतों ने भी प्रसूति लाभ अधिनियम पारित किया.
Ambedkar Jayanti 2024: अंबेडकर जयंती का इतिहास
डॉ. भीमराव अंबेडकर की पहली बार जयंती 14 अप्रैल, 1928 को पुणे में मनाई गयी थी. बाबा साहब की जंसती मनाने की शुरुआत जनार्दन सदाशिव रणपिसे ने की थी, जो अंबेडकर के एक प्रबल अनुयायी और सामाजिक कार्यकर्ता थे. बता दें कि उन्होंने इस दिन को मनाने की परंपरा शुरू की थी. वहीं, अब देश में इस दिन को मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश भी रहता है.
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Ambedkar Jayanti 2024: अंबेडकर जयंती का महत्व
अंबेडकर जयंती पर वंचितों के उत्थान में बाबा साहब के योगदान को याद किया जाता है. दरअसल, अंबेडकर जयंती जाति आधारित कट्टरता की ओर ध्यान केंद्रित करती है, जो आज भी देश में बनी हुई है. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया था. जो जाति और धर्म की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है.
सभी समुदायों के बीच सद्भाव के अंबेडकर के दृष्टिकोण को बढ़ावा देने से राष्ट्रीय एकता और एकीकरण को बढ़ावा मिलता है.
समारोह के दौरान विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा शुरू की गई सामाजिक पहल और सामुदायिक विकास परियोजनाएँ हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान में योगदान देती हैं.
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डॉ. अम्बेडकर जयंती की छुट्टी क्यों मनाई जाती है?
सभी के लिए समान अधिकारों की दिशा में डॉ. भीम राव अम्बेडकर के योगदान का सम्मान करने के लिए हर साल 14 अप्रैल को डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती मनाई जाती है. जनार्दन सदाशिव राणापिसाय ने डॉ. अंबेडकर की स्मृति में जन्मदिन मनाने की परंपरा शुरू की. वह डॉ. अंबेडकर की तरह एक सामाजिक कार्यकर्ता और उनके आगमन अनुयायियों में से एक थे. उन्होंने सबसे पहले भीम जयंती 1928 में पुणे में मनाई थी.
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